The best Side of Chalawa ki dahshat ek succhi kahani

इधर मैं अपने दोस्तों के साथ मिल का छुट्टियों का भरपूर मजा ले रहा हूं, दिन भर गांव में आवारागर्दी करना, खेलना, नहाने के लिए नदी में जाना, वहां बैठ कर हिसर, किंगोड़ा, तूंगा, तिमला( जंगली फल) आदि फल खूब खाते हैं, इसी तरह दिन गुजर रहे हैं।

गांव के मर्द खेतों से खरपतवार को हटा रहे हैं और खेतों में आग लगा कर झाड़- झंकड़ को साफ करने में लगे हैं।

मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि गाँव में लोग जल्दी ही जग जाते है इसलिए शायद यह भी मेरी ही तरह जल्दी जग गया होगा और अपनी छत पर टहल रहा होगा। तो मैं भी व्यायाम करने लगा।

कुछ गांव के लोग अपने खेतों में गोट( खेतों में किसी कोने में दोनों तरफ छप्पर लगा कर उसमे अपने जानवरों को बांध कर कुछ समय वहीं उसी छप्पर में रहते हैं ताकि खेतों में ज्यादा से ज्यादा गोबर इकट्ठा हो सके) लगा रहे हैं। गेंहू की बुवाई का समय नजदीक आ गया है, इसलिए काम जल्दी जल्दी हो रहा है।

लेकिन क्यों है ऐसा नाम और क्या है उसकी कहानी ?

ये घटना जब भी मेरे जहन में आती है तो मेरे आंखों के सामने फिर से वही परिदृश्य घूमने लगता है कि क्या वास्तव में ऐसा कुछ आज के जमाने में भी संभव है, आज इस घटना को ३० साल से ज्यादा का समय हो गया है पर लगता है कल की ही बात हो।

ये एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी है, पहाड़ों में आज भी भूनी हुई किसी भी चीज को खुले में, अनजानी जगहों पर, रात में या कहीं जंगलों में खाने के लिए मना किया जाता है, ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने पर छलावा (भूत) उसे छल लेता है।

एक साथ कई तरह के भाव अलका के चेहरे पर आकर धमाचौकड़ी करने लगे। चिट्ठी हाथ में दबाए वह बहुत तेज़ी से द.

‘ बस पहुँच ही रहे हैं ।’ आलोक अंकल ने उत्तर दिया । उसकी स्थिति देखकर। .

मैं तेजी से नीचे आया और कंबल ओढ़ कर सो गया। सुबह मैंने ये बात अपने घर वालों को बताई तो किसी ने भी मेरा विश्वास नहीं किया, सिवाय मेरी दादी के।

उन्होने कहा कि वो एक छलावा था और छलावा बहुत ही ख़तरनाक होते हैं। तेरी जान इसलिए बच गयी क्यूंकि तेरे गले में यह माता रानी का रक्षा कवच था। तब मुझे याद आया कि यह तो मैंने थोड़े दिन पहले ही अपने गले में बांधा था।

अभी रात में खाना खाने के बाद हम सब ख्वाल ( गांव का एक छोटा मोहल्ला) में बाहर ही खटिया लगा के दादी से कहानी सुन रहे more info थे, कुछ तो अभी जुगनू पकड़ने में व्यस्त हैं, रात बहुत धीरे धीरे गहरा रही है और हम सब सोने की तैयारी करने लगे हैं, अभी नींद आईं ही थी कि सहसा गांव में हर तरफ शोर होने लगा, हलचल बढ़ गई, सभी उठ गए कि आखिर क्या माजरा है, बुजुर्ग आपस में बात करने लगे, और हम सब बच्चे डर के मारे अपने अपने माता पिता, दादी, दादा, ताई, से चिपक कर रोने लगे, समझ ही नहीं आ रहा था कि इतनी रात कौन शोर कर रहा है और क्यों ?

उस समय मेरे पैर जैसे जम ही गये थे। उस समय मैं खुद को कोसने लगा कि मैं ऊपर आया ही क्यों? अब मैं नही बचने वाला।

बात उन दिनों की है जब मैं अपनी बहनों के साथ सर्दियों की छुट्टियां मनाने अपने गांव गया हुआ था। मेरी ही तरह और बच्चे भी गांव आए हुए थे।गांव में सर्दियों में काफी चहल पहल हो जाती है। गांव में काफी भीड़ भाड़ और उत्सव जैसा माहौल हो जाता है, हर तरफ शोर, हल्ला गुल्ला, बच्चों की उधम चौकड़ी से ऐसा लगता है, जैसे गांव फिर से जी उठा हो। ऐसा नहीं है कि गांव में लोग नहीं है, पर जो है वो अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। धान और भुट्टा (मक्काई) कट चुका है और गेंहू की बुआई के लिए खेत तैयार हो रहे हैं। खेतों में जगह जगह गोबर का ढेर लगाया जा रहा है, गांव के लोग आज कल बहुत व्यस्त हैं, बच्चे महिलाएं सभी गोबर उठा उठा कर खेतों में ले जा रहे हैं, ताकि खेतों को ज्यादा खाद मिल सके।

इस आस के संग उसने अपने घायल तन-मन को समझाने के साथ अपने अनियंत्रित विचारों को झटकने का प्रयत्न किया .

उधर दूसरी ओर वो, गिरीश भाई को एक खेत से दूसरे खेत की ओर ले जा रहा था, और गिरीश भाई की जान संकट में थी, अगर शीघ्र उसे ना रोका गया तो वो, गिरीश भाई को मार देगा। सभी लड़के तेजी से भाग रहे थे, परन्तु पहाड़ में उकाल (चढ़ाई) में चढ़ना आसान नहीं होता, खेती सीढ़ी नुमा होती है जिससे एक खेत से दूसरे खेत में जाने में समय अधिक लगता है, फिर भी लड़के ऊपर खेत की ओर भागे जा रहे थे कि किस तरह से गिरीश को "केरी" पार करने से रोका जाए।

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